What To Do list - हमें क्या करना चाहिए
PART - 2
THINK and GROW RICH
By Napoleon Hill
> इच्छा (Desire)
सभी उपलब्धियों का शुरुआती बिंदु इच्छा से शुरू होती है
हर वयस्क आदमी जो धन का मतलब समझता है वह धन चाहता है। परन्तु केवल चाहने भर से दौलत नहीं मिल जाती है। दौलत निश्चित रूप से आती है अगर दौलत हासिल करने की प्रबल इच्छा हो , ऐसी इच्छा जो दिलोदिमाग पर हावी हो जाए और स्थाई मानसिक अवस्था बन जाए , अगर दौलत हासिल करने की व्यवस्था बनाई जाए या निश्चित तरीके खोजे जाएँ और अगर उन योजनाओं पर दृढ़ता और लगन से जुटे रहा जाए और असफलता को पहचानने से इंकार कर दिया जाए।
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6 Golden Rules for Success में किसी "कठिन मेहनत" की जरुरत नहीं होती है। यह आपसे कोई बलिदान नहीं माँगते। वे नहीं चाहते की आप मुर्ख या अतिविश्वासी बन जाएँ। इन पर अमल करने के लिए यह कतई जरुरी नहीं है किआप उच्च शिक्षित हों। परन्तु इन 6 कदमो को सफलतापूर्वक जीवन में उतारने के लिए आपमें पर्याप्त कल्पनाशक्ति होना अनिवार्य है ताकि आप यह देख सकें और समझ सकें कि आमिर बनना किस्मत या संयोग या अवसर के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। हर इंसान को यह समझ लेना चाहिए कि जिन लोगो ने ढेर साडी दौलत इकट्ठी की है उन्होंने दौलत पाने से पहले काफी सपने देखे हैं , आशाएँ संजोई हैं, प्रबल इच्छाओं और योजनाओं का सहर लिया है।
यहीं पर आप यह भी जान लें कि आप ढेर साडी दौलत कभी नहीं कमा सकते, अगर आपमें आमिर बनने की प्रबल इच्छा नहीं है और अगर आप वास्तव में यह विश्वास नहीं करते कि यह दौलत आपके पास होगी।
आप जो काम करना चाहते हैं, अगर वह सही है और आप उसमें विश्वास करते हैं, तो फिर आगे बढ़िए और उस काम को कर दीजिए । अपने सपने को सामने रखिये और इस बात की परवाह मत कीजिए कि आपकी अस्थाई सफलता पर "लोग" क्या कहेंगे। "लोग" शायद यह नहीं जानते है कि हर असफलता के भीतर उतनी ही बड़ी सफलता का बीज छुपा हुआ है।
अपने सपने को लॉन्चिंग पैड पर लिख लें और हर रोज सुबह उठते ही और शाम को सोने से पाँच मिनट पहले अपने सपने को पढ़ लें इससे आपका अवचेतन शक्ति काम करना शुरू कर देगा और धीरे -धीरे आपका सपना पूरा होने लगेगा।
बनने और करने की प्रबल इच्छा वह शुरुआती बिंदु है जहाँ से स्वप्नदर्शी को अपने ऊपर की यात्रा शुरू करनी पड़ती है। महत्वाकांक्षा के आभाव, उदासीनता, या आलस से सपने पैदा नहीं होते।
याद रखें, जो लोग जीवन में सफल हुए हैं उन्हें बुरी शुरुआत का अनुभव हुआ है और सफलता की मंजिल पर पहुँचने से पहले उनकी रह में बहुत सी बाधाएँ आई हैं। सफल लोगो का टर्निंग प्वाइंट आम तौर पर किसी संकट के समय आता है, जिस समय उन्हें अपने "दूसरे व्यक्तित्व" (other selves) का पता चलता है।
(eg. - मान लीजिये आपको एक कार लेना है जो कर लेनी है उस कार की फोटो अपने विज़न बोर्ड या अपने दीवार, आलमारी, फ्रिज़ पर चिपका दो और रोज सुबह उठते ही और शाम को सोने से पहले उसे देखें और विश्वास कीजिये की ये आपके पास है इससे LAW OF ATTRACTION का सिद्धांत काम करना सुरु कर देगा और आपका अवचेतन शक्ति उसे अवश्य पूरा करेगा। बस सही दिशा में काम करना शुरू कर दें )
किसी चीज की चाह रखने और उसके लिए तैयार रहने में फर्क होता है। कोई भी व्यक्ति किसी चीज को प्राप्त करने के लिए तब तक तैयार नहीं होता जब कि उसे वह हासिल करने का विश्वास न हो। यह मानसिक अवस्था होती है। विश्वास के लिए आपको अपने मस्तिष्क खुला रखना होगा। बंद मस्तिष्क में न तो आस्था होती है, ही साहस और विश्वास।
याद रखें, जीवन में अपने लक्ष्य को ऊँचा रखने के लिए, अमीरी और समृद्धि का लक्ष्य बनाने के लिए आपको गरीबी और दुःख के लक्ष्य बनाने की तुलना में ज्यादा प्रयास नहीं करना है। एक महान कवी ने इस शाश्वत सत्य को इन पंक्तियों में बखूबी समझाया है :
"मैंने जिंदगी से चवन्नी का सौदा किया,
और जिंदगी ने मुझे इससे ज्यादा नहीं दिया,
हालाँकि जब शाम को मैंने अपनी मज़बूरी गिनी
तो मैंने और ज्यादा पैसे मांगे।
"जिंदगी एक न्यायप्रिय मालिक है,
यह आपको उतना ही देती है जितना आप माँगते हैं,
परन्तु एक बार अपनी मज़दूरी तय कर लेते हैं,
तो फिर आपको उतने पर ही काम करना पड़ता है।
"मैं एक मजदूर की तनख्वाह पर काम करता रहा,
मैंने यही सीखा, और सोचकर निराश हुआ
कि मै जिंदगी से जो भी तनख्वाह माँगता
जिंदगी मुझे ख़ुशी-ख़ुशी वही दे देती।"
इच्छा प्रकृति को हरा सकती है -
हर दुर्भाग्य अपने साथ उतने ही बड़े सौभाग्य का बीज लेकर आता है और प्रबल इच्छा भौतिक रूप में आने जके तरीके खोज लेती है।
मस्तिष्क की कोई सीमाएँ नहीं हैं , सिवाय उनके जिन्हें हम मान लेते हैं। गरीब और अमिर दोनों ही विचार की संतानें हैं।
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हर वयस्क आदमी जो धन का मतलब समझता है वह धन चाहता है। परन्तु केवल चाहने भर से दौलत नहीं मिल जाती है। दौलत निश्चित रूप से आती है अगर दौलत हासिल करने की प्रबल इच्छा हो , ऐसी इच्छा जो दिलोदिमाग पर हावी हो जाए और स्थाई मानसिक अवस्था बन जाए , अगर दौलत हासिल करने की व्यवस्था बनाई जाए या निश्चित तरीके खोजे जाएँ और अगर उन योजनाओं पर दृढ़ता और लगन से जुटे रहा जाए और असफलता को पहचानने से इंकार कर दिया जाए।
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यहीं पर आप यह भी जान लें कि आप ढेर साडी दौलत कभी नहीं कमा सकते, अगर आपमें आमिर बनने की प्रबल इच्छा नहीं है और अगर आप वास्तव में यह विश्वास नहीं करते कि यह दौलत आपके पास होगी।
आप जो काम करना चाहते हैं, अगर वह सही है और आप उसमें विश्वास करते हैं, तो फिर आगे बढ़िए और उस काम को कर दीजिए । अपने सपने को सामने रखिये और इस बात की परवाह मत कीजिए कि आपकी अस्थाई सफलता पर "लोग" क्या कहेंगे। "लोग" शायद यह नहीं जानते है कि हर असफलता के भीतर उतनी ही बड़ी सफलता का बीज छुपा हुआ है।
अपने सपने को लॉन्चिंग पैड पर लिख लें और हर रोज सुबह उठते ही और शाम को सोने से पाँच मिनट पहले अपने सपने को पढ़ लें इससे आपका अवचेतन शक्ति काम करना शुरू कर देगा और धीरे -धीरे आपका सपना पूरा होने लगेगा।
बनने और करने की प्रबल इच्छा वह शुरुआती बिंदु है जहाँ से स्वप्नदर्शी को अपने ऊपर की यात्रा शुरू करनी पड़ती है। महत्वाकांक्षा के आभाव, उदासीनता, या आलस से सपने पैदा नहीं होते।
याद रखें, जो लोग जीवन में सफल हुए हैं उन्हें बुरी शुरुआत का अनुभव हुआ है और सफलता की मंजिल पर पहुँचने से पहले उनकी रह में बहुत सी बाधाएँ आई हैं। सफल लोगो का टर्निंग प्वाइंट आम तौर पर किसी संकट के समय आता है, जिस समय उन्हें अपने "दूसरे व्यक्तित्व" (other selves) का पता चलता है।
(eg. - मान लीजिये आपको एक कार लेना है जो कर लेनी है उस कार की फोटो अपने विज़न बोर्ड या अपने दीवार, आलमारी, फ्रिज़ पर चिपका दो और रोज सुबह उठते ही और शाम को सोने से पहले उसे देखें और विश्वास कीजिये की ये आपके पास है इससे LAW OF ATTRACTION का सिद्धांत काम करना सुरु कर देगा और आपका अवचेतन शक्ति उसे अवश्य पूरा करेगा। बस सही दिशा में काम करना शुरू कर दें )
किसी चीज की चाह रखने और उसके लिए तैयार रहने में फर्क होता है। कोई भी व्यक्ति किसी चीज को प्राप्त करने के लिए तब तक तैयार नहीं होता जब कि उसे वह हासिल करने का विश्वास न हो। यह मानसिक अवस्था होती है। विश्वास के लिए आपको अपने मस्तिष्क खुला रखना होगा। बंद मस्तिष्क में न तो आस्था होती है, ही साहस और विश्वास।
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"मैंने जिंदगी से चवन्नी का सौदा किया,
और जिंदगी ने मुझे इससे ज्यादा नहीं दिया,
हालाँकि जब शाम को मैंने अपनी मज़बूरी गिनी
तो मैंने और ज्यादा पैसे मांगे।
"जिंदगी एक न्यायप्रिय मालिक है,
यह आपको उतना ही देती है जितना आप माँगते हैं,
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"मैं एक मजदूर की तनख्वाह पर काम करता रहा,
मैंने यही सीखा, और सोचकर निराश हुआ
कि मै जिंदगी से जो भी तनख्वाह माँगता
जिंदगी मुझे ख़ुशी-ख़ुशी वही दे देती।"
इच्छा प्रकृति को हरा सकती है -
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